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araat सर्म
अभिषेक आपका कर
जल से
चाह रही ।
हो गयी पूर्ण, जो शृंगार श्रापके तन का कर,
इन्द्राणी भाग्य
सराह रही 11
हे विभो ! हमारी गिरा सफल,
हो गयी आपकी 'जय' 'जय' कह |
हो गया आपके श्रागम से, पावन 'सुमेरु' गिरि निश्चय यह ॥
चुका,
इसी --
पर्याप्त समय हो क्षण 'कुण्ड ग्राम' को जाना है ।
तर यहाँ अब और अधिक, दो क्षण भी नहीं लगाना है |"
यह कह 'ऐरावत' पर उनने, प्रभु को बैठा प्रस्थान किया । अविराम पहुँच कर 'कुण्ड ग्राम',
राजाङ्गण
शोभावान
किया ||
रानी की,
सौंप दिया ।
द्रुत इन्द्राणी ने
निद्रा हर बालक
औ कहा - " न व्यापे पुत्र - विरह,
इससे मैंने यह छद्म किया ||
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