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परम ज्योति महावीर
जगवन्द्य आप हैं क्यों कि श्राप-- ने जग को यह जगदीश दिया । योगीश योगियों हेतु दिया ॥ विद्वानों को वागीश दिया ॥
अभिषेक हेतु यह छह्म हुवा, इसमें न श्राप सन्देह करें इन 'परम ज्योति' की पुण्य ज्योति से ज्योतिम य निज गेह करें।
यह कह इन्द्राणी मौन हुई, सुन रानी को आनन्द हुआ। श्रानो । अब देखें सुरपति काजो नाट्य वहाँ सानन्द हुवा ॥