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जल धारा शिर पर गिरती थी,
पर कँपे वीर भगवान
नहीं |
'त्रिशला' ने -
सन्तान नहीं ॥
अबला होकर भी
थी जनी अवल
गिर वह पवित्र,
प्रभु के तन पर जल राशि विशेष पवित्र हुई । निज सँग अशोक दल गिरने से, उसकी छवि चित्र विचित्र हुई ||
विशाल हुये ।
अष्टाधिक एक सहस्र कलशसे यों अभिषेक पर नहीं अल्प भी क्षोभित वे, 'त्रिशला ' माता के लाल हुये ॥
परम ज्योति महावीर
द्वारा चन्दनादि
फिर देवों की अग्नि जलायी शुद्ध गयी । जिसकी पावनतम ज्वाला में, डाली भी धूप विशुद्ध गयी ||
पश्चात् इन्द्र ने अष्ट द्रव्यसे पूज पूर्ण अभिषेक किया । तदनन्तर उन शुभ परम ज्योति'को गोदी में साविवेक लिया ||