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परम ज्योति मह
औ' इधर सभी वे उस 'सुमेरु' के 'पाण्डुक' वन को देख रुके । थे जहाँ अनेक जिनेन्द्रों के हो पुण्य जन्म-अभिषेक चुके ।
अभिषेक प्रसाधन प्रस्तुत थे, उस अवसर के अनुरूप वहाँ ! थी पाण्डुक शिला बनीं जिसपर, सिंहासन था मणि रूप वहाँ ।
उस पर ही गये विराजे थे, वे तीर्थकर भगवान अहो ।
औ' अगल बगल सुरनायक थे, 'सौधर्म' और 'ईशान' अहो ।
ध्वज, छत्र, चमर, घट, मुकुर, व्यजन, ठौना औ' मारी नाम मयी । इन आठों मङ्गलमय द्रव्योंसे हो वह शिला ललाम गयी ।
इस सब उत्सव के केन्द्र बिन्दु, 'त्रिशला' के राज दुलारे थे। उनके ही लिये सुरों ने ये, उपकरण जुटाये सारे थे।