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सातवाँ सर्ग
चौराहों पर अभिनव अभिनय
शालाएँ गयीं बनायीं थी ।
बिरङ्गी मालाओं
सजायीं थीं ॥
जो रङ्ग के द्वारा गयीं
थे जिनमें दर्शक मण्डल की, सुविधार्थ सौम्य सोपान बने । औ' धूप निवारण करने को, थे विविध विशेष वितान तने ॥
सुन सकें गीत सब, इसका भी - पर्याप्त मनोज्ञ प्रबन्ध हुवा | महिलाएँ पृथक् विराज सकें, इसका भी योग्य प्रबन्ध हुवा ॥
अति भव्य व्यवस्था त्रुटि का न कहीं भी अवलोक जिसे हर मन में आश्चर्य महान हुवा ||
यों किसी नागरिक ने न नगरकी सजा हेतु प्रमाद किया 1 नृप ने अत्यन्त उदार हृदयसे सूचित निज श्रह्लाद किया ||
हुई सभी, भान हुवा | दर्शक के,
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