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परम ज्योति महावीर
रच गये अनेक विचित्र चित्र, भीतों पर चतुर चितेरे थे।
आँगन में चौक बना वधुत्रोंने विविध प्रसून बिग्वेरे थे ।
धूपायन में दी गयी जला, थी दिव्य दशांगी धूप अहो । रख दिये गये थे ठौर ठौर, नव मंगल कलश अनूप अहो ।
पथ दिये गये थे भींच, अतः उड़ती दिखती थी धूल नहीं । एवं न मलिन हो पाते थे, दर्शक के दिव्य दुक्ल कहीं ।
शुभ अगरबत्तियाँ जलने से, था हुवा समीर पुनीत वहाँ । पाँचों अङ्गलियों के थापोंसे युक्त हुई हर भीत वहाँ ।।
सुन्दरतम सदनों के शिखरोंपर ध्वजा गयीं फहरायीं थीं। जो शीतल मन्द सुगन्ध पवन, के झोंकों से लहरायीं थीं ॥