________________
१६७
सातवाँ सर्ग
श्रा उधर गर्भ से प्राची के, दिनकर ने व्योम सजाया था।
औ' इधर भाग्य पर अपने अब, वह 'कुण्ड ग्राम' मुसकाया था ।
था सजा न केवल राज भवन, सब नगर सजा बाजार सजे । सब चौक सजे, सब मार्ग सजे, सब गेह सजे, सब द्वार सजे ।।
सब उपवन सब उद्यान सजे, सब वृक्ष सजे सब डाल सजी । कहने का यह सारांश वहाँ, कण कण अवनी तत्काल सजी ।।
अति कुशल शिल्पियों ने कौशलसे नगर सजा सब डाला था। मानों, अलका की सुषमा को, इस 'कुण्ड ग्राम' में ढाला था ।
सर्वत्र शुक्लता सदनों पर, चूने से गयी चढ़ायी थी। बन्दनवारों से दारों कीसुन्दरता गयी बढ़ायी थी ।