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छठा सर्ग
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अतएव परस्पर वे नृप के गुण गातीं हुई सहास चलीं । राजा की भेंट दिखाने को, अब वे रानी के पास चलीं ॥
अतिशय कृतज्ञता भूपति केप्रति टपक रही थी अङ्गों से । तन लदा भूषणों द्वारा था,
औ' मन था लदा उमङ्गों से ॥ 'सिद्धार्थ' आज सिद्धार्थ हुये, था अतः हर्ष का अन्त नहीं । सोत्साह करायी जन्मोत्सवकी विधि प्रारम्भ तुरन्त बहीं ॥
शुभ समारोह करवाने के, सामन्तों को अधिकार दिये ।। सङ्गीत, नृत्य औ' नाटक के श्रायोजन विविध प्रकार किये ॥
शुभ कार्य क्रमों की सब रचना, शुभ अवसर के अनुकूल हुई । की गयी व्यवस्था अति उत्तम, उसमें न कहीं कुछ भूल हुई ॥