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छठा सर्ग
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पिकियों के पञ्चम गायन से, गुंजित अवनी श्राकाश हुवा । यों लगा कि ज्यों वे कहती हों, अवतरित मधुर मधुमास हुवा ॥
आरक्त पलाशों की छवि पर, अनुरक्त सुकोमल कीर दिखे । पिक अाम्र-मञ्जरी का मादक, मधु पीने हेतु अधीर दिखे ॥
नव कलियाँ दिखी लताओं में, सरसी में अभिनव पद्म दिखे । मकरन्द पिपासु भ्रमरियों को ये मौरभमय मधु-सद्म दिखे ॥
मतवाले वानर व्यस्त दिखे, निज उछल कूद के खेलों में । उनको न दिखा आकर्षण था, विटयों से लिपटी वेलों में ॥
पर मधुप-लली आसक्त दिखीं, माधवी-कली के गालों पर । गौरय्या गाती गीत दिखीं, विकसित कदम्ब की डालों पर ॥
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