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परम ज्योति महावीर
महिषी ने देखा, बेलों का मलयागत पवन नचाता है। वह उन्हें समझ कर अबला ही, निर्भय उत्पात मचाता है।
नव प्राण मिले हैं वन-श्री को, मञ्जरित प्रफुल्लित श्राम हुये । पा नये मौर के सौरभ को, ये उपवन अति अभिराम हुये ॥
तज शोक अशोको के तरुवर, सुमनावलि पाकर झूम रहे । झुक शरणागत लतिकात्रो के, मुख मण्डल सहसा चूम रहे ॥
सन्ताप-निकन्दन सुमनो से, चित्रित चन्दन के अङ्ग हुये । अतएव स्वयं ही तो उनके, वन्दन में व्यस्त विहङ्ग हुये ।।
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मँडराती चपल तितलियाँ भी नव रंग बिरंगी कलियों पर। खग-चहक रहे हर क्यारी पर, सब कुञ्जों पर सब गलियों पर ।।