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परम ज्योति महावीर
यो समाधान सुन रानी से, जिनवाणी पर विश्वास हुवा । है गर्भ हेतु इस प्रज्ञा का, ऐसा उनको आभास हुवा ॥
यो चलता रहता श्राध्यात्मिकचर्चा का सौम्य प्रवाह सदा । जिनमें त्रिशला तो प्रमुख भागमचि से लेतीं सोत्साह सदा ।।
दिखता, महिषी के गर्भ सदृशही उनका ज्ञान विशाल बढ़ा । मानो अदृश्य रह जननी को, दिन रात रहे हों लाल पढ़ा ॥
परिणाम विशेष पवित्र हुये, सम्यक्त व विशेष विशुद्ध हुवा । श्रद्धा न विशेष समृद्ध हुवा, सद्ज्ञान विशेष प्रबुद्ध हुवा ।।
अतएव श्रावकाचार-नियमपालन में भी उत्माह बढ़ा । श्री 'पार्श्वनाथ' के दर्शन श्री' पूजन में भक्ति प्रवाह बढ़ा ॥