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छठा सर्ग
की प्रकट किसी ने जिज्ञासा 'क्या उनको आता क्रोध नहीं ?' झट उत्तर मिला--"किसी से वेरखते ही वैर विरोध नहीं ॥'
फिर बोल उठी कोई-~-'उनकोक्या मोह न सकती रम्भा भी ?' उत्तर दे दिया कि 'मानेंगे-- वे उसे शुष्क तरु खम्भा सी ।'
फिर किया किसी ने प्रश्न---'न क्या वे होते चिन्तालीन कभी ?' बोलीं.-'होते कृतकृत्य, अतः जगती इच्छा न नवीन कभी ।'
फिर कहा किसी ने-'क्या हमको दे सकते वे सुख क्लेश नहीं ? बतलाया कि किसी भी प्राणी को
देते सुख दुःख जिनेश नहीं।' फिर तर्क उपस्थित हुवा कि 'तब क्यों उन्हें पूजता लोक सभी ! उत्तर था-'उनका गुण चिन्तन देता चिन्ताएँ रोक सभी।'