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परम ज्योति महावीर. बोली कोई-क्या कभी उन्हें श्राता प्रभुता का मान नहीं ? स्वर आया--'उन्हें प्रतिष्ठा से श्राती तक भी मुसकान नहीं ।'
फिर कहा किसी ने-'क्या उनको-- पूजक से होता मोह नहीं ? उत्तर था-'मोह न पूजक सेनिन्दक से रहता द्रोह नहीं ॥'
फिर पूंछ उठी कोई-'लगती-- क्या उन्हें भूख और प्याम नहीं ? बतलाया-'ऐन्द्रिय विषयेच्छा, जा सकती उनके पास नहीं ।
कह उठी अन्य--'क्या का या सेभी रखते हैं व राग नहीं ? ममझाया--तन क्या ? जीवन सेभी रखते वे अनुराग नहीं ?
फिर कोई पँछ उठी-- 'उनको-- होता न कहीं क्या रोग कभी ? सुन कहा-'जन्मतः होते हैं, उनके शुचि अङ्ग निरोग सभी।'