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'अपभ्रंश भाषा के महाकवि रइधू ने अपने ‘सम्मइ जिन चरिउ' ग्रंथ में इस नगरी पद्मावती को 'पोमावइ शब्द से संबोधित किया है। यह नगरी पूर्व समय में खूब समृद्ध थी। इसकी समृद्धि का उल्लेख खजुराहो के वि. स. 1052 के शिलालेख में पाया जाता है। उसमें बतलाया गया है कि यह नगरी ऊंचे-ऊंचे गगनचुम्बी भवनों एवं मकानों से सुशोभित थी। उसके राजमार्गों में बड़े-बड़े तेज तुरंग दौड़ते थे और उसकी चमकती हुई स्वच्छ एवं शुभ्र दीवारें आकाश से बातें करती थींसोधुत्तुंगपतङ्गलङ्कन पथप्रोत्तुंगमालाकुला। शुभ्राम्रकषपाण्डुरोच्चशिखर प्राकारचित्रा (म्ब) रा प्रालेयाचल शृङ्गसन्नि (नि) भशुभ प्रासादसयावती भव्यापूर्वमभूदपूर्वरचना या नाम पद्मावती॥ त्वंगुत्तुंग मोदगमक्षु (खु) रक्षोदाद्रजः प्रो (द) त, यस्यांजीन (ण) कठोर बभु (स्त्र) मकरो कूर्मोदरामं नमः। मत्तानेक करालकुम्मि करह प्रोत्कृष्ट वृष्ट्या (द्भु) वं। तं कर्दम मुद्रिया क्षितितलं ता ब्रू (ब्र) त किं संस्तुमः॥
-Enigraphica V.I.P 149 इस सम्मुलेख से सहज ही पद्मावती नगरी की विशालता का अनुमान कर सकते हैं और यह सहज एवं स्वाभाविक है। पूर्व समय में रेलपथ एवं सड़क पथ के विस्तृत साधन नहीं थे। अतः सारा यातायात, व्यापार एवं व्यापारिक सामान भेजने का एकमात्र साधन केवल नदियां ही थीं। पद्मावती नगरी के मानचित्र से यह विदित होगा कि इस नगरी के चारों
ओर नदियां ही हैं। इसलिए पूर्व में यह समृद्धिशाली नगरी रही होगी इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है।
जम्बू द्वीप सुप्रसिद्ध तथा सुन्दर द्वीप है। उसमें हमारा भारत देश-पवित्र देश है। उसके छह खण्ड । उसमें एक आर्य खण्ड । इस आर्य खण्ड में
पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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