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विदेह नामक एक देश है। इसके पूर्व विदेह की रम्यक क्षेत्र की मुख्य नगरी पद्मावती है। वर्तमान में सिंध और पार्वती के संगम पर स्थित पवाया नामक एक छोटा सा ग्राम जो साहित्यिक और पुरातत्वीय सामग्री के आधार पर प्राचीन पद्मावती नगरी मानी जाती है। उपरोक्त शिलालेख में उल्लेख है कि इसकी स्थापना त्रेता युगों के बीच कभी पद्म राजवंश के राजा ने की थी।
भगवान पार्श्वनाथ का विहार पद्मावती नगरी में हुआ था। भगवान पार्श्वनाथ ने अनेक भागों में विहार करके अहिंसा का जो समर्थ प्रचार किया, उससे अनेक आर्य, अनार्य जातियां उनके धर्म में दीक्षित हुईं। नाग, द्रविड़ आदि जातियों में उनकी मान्यता असंदिग्ध थी। वेदों और स्मृतियों में इन जातियों का वेद विरोध व्रात्य के रूप में उल्लेख मिलता है।
वस्तुतः व्रात्य श्रमण संस्कृति की जैन धारा के अनुयायी थे। इन व्रात्यों में नाग जाति अधिक शक्तिशाली थी। तक्षशिला, उद्यानपुरी, अहिछत्र, मथुरा, पद्मावती, कान्तिपुरी, नागपुर आदि इस जाति के प्रसिद्ध केन्द्र थे। पार्श्वनाथ इन नाग जाति के केन्द्रों में कई बार पधारे थे।
सर्व साधारण के समान राज्य वर्ग पर भी भगवान पार्श्वनाथ का व्यापक प्रभाव था। उस समय जितने व्रात्य क्षत्रिय राजा थे वे पार्श्वनाथ के उपासक थे।
पद्मावती नगरी का उल्लेख विष्णु पुराण में भी मिलता है। जिसमें नागों की तीन राजधानियों में से एक बतलाया है। अन्य राजधानियों में कांतिपुरी और मथुरा थी। इसकी पुष्टि वायु पराण से भी होती है। जिसमें दो राजवंशों का उल्लेख है, एक पद्मावती के और दूसरे मथुरा के। इन दोनों राजवंशों में क्रमशः 9 और 7 राजा हुए।
पनाया में प्राप्त पुरालेख से इस बात की पुष्टि होती है कि ईसा की - प्रथम शताब्दी के प्रारम्भ में यहां नागों का राज्य था। पद्मावती नगरी के पावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास