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पद्मावती
पद्मावती पुरवाल समाज की उद्गम स्थान पद्मावती नगरी है, वहीं यह नगरी जैन समाज की 84 जातियों का उद्गम स्थल भी है। इसका उल्लेख परिचयात्मक अध्याय में किया जा चुका है। ईसा पूर्व 478 के लगभग श्रेणिक मगध के सिंहासन पर बैठा। यह बड़ा प्रतापी नरेश था । जैन साहित्य से पता चलता है कि उसके राज्य में किसी प्रकार की अनीति नहीं
और न किसी प्रकार का भय था । उसका ध्यान समृद्धि की ओर रहता था । विभिन्न व्यवसायों, व्यापारों एवं उद्योगों का उसके आश्रय संरक्षण होने से श्रेणियों एवं नियमों में संगठन हुआ। इसी कारण उसका नाम श्रेणिक पड़ा । सर्व प्रकार की आंतरिक स्वतंत्रता से युक्त इन जनतंत्रात्मक संस्थाओं द्वारा उसने साम्राज्य के उद्योग-धन्धों, व्यवसाय और व्यापारिक श्रेणियों को भारी प्रोत्साहन दिया। ये व्यापारिक श्रेणियां ही आगे चलकर वर्तमान जातियों के रूप में धीरे-धीरे परिणित हो गईं।
कहा जाता है कि इन्हें व्यापारिक श्रेणियों को केन्द्रीय सभा बनाने के लिए पद्मावती नगरी में सभा बुलाई गई जहां चौरासी नगर के जैन प्रतिनिधि आने से 84 जातियों का निर्माण हुआ। इसका श्रेय पद्मावती नगरी को ही जाता है 1
पद्मावती नगरी, पद्मावती समाज और पद्मावती देवी के त्रिभुज में सन्निहित है हमारा पद्मावती जाति का इतिहास । तो आइये ! प्रथमतः प्राप्त करें जानकारी पद्मावती नगरी की ।
पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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