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- आप कर्मकाण्ड संबंधी ज्ञान उत्तराधिकार में अपने तृतीय पुत्र श्री हेमचन्द्र जैन कौन्देय शास्त्री एम.ए. काव्यतीर्थ 'प्रभाकर' को सौंप अपनी कीर्ति और पाण्डित्य को अमरत्व प्रदान कर इस असार संसार से पलायन कर गये। आपकी पुण्य स्मृति में आपकी सुपुत्री ने श्री सोनागिर सिद्ध पर मंदिर नं. 58 के चबूतरे का कुछ भाग निर्माण कर पाटिया लगाया।
प्राचार्य नरेन्द्रप्रकाश जैन प्राचार्य पद से निवृत्त होने पर भी प्राचार्य नाम से ख्याति प्राप्त श्री नरेन्द्र प्रकाश जी जन्मजात प्रतिभा से आत्मज्ञान में अधिकार प्राप्त, सुमधुर वक्ता, ओजस्वी लेखक, अखिल भारतीय जैन समाज में सम्मान प्राप्त हैं। आपका जन्म फिरोजाबाद (उत्तर प्रदेश) में 31 दिसम्बर सन् 1933 ई. में हुआ। आपके पिताश्री सुप्रतिष्ठ प्रतिष्ठाचार्य श्री रामस्वरूप जी एवं माताश्री श्रीमती चमेलीबाई थीं। आपके पिताश्री के बड़े भाई श्री पं. कुंजबिहारीलाल जी भी अच्छे कवि एवं विधि विशेषज्ञ (प्रतिष्ठाचाय) थे। आप अपने व्यक्तित्व एवं कृतित्व से पद्मावती पुरवाल जाति को गौरवान्वित कर रहे हैं।
आपके पिताश्री समाज में सदैव समादर तथा प्रतिष्ठा पाते रहे थे। मात्र पिता ही नहीं अपितु पूरा परिवार विद्वता के लिए प्रख्यात रहा है।
साढ़े आर वर्ष की उम्र में आप अध्ययनार्थ श्री पन्नालाल दिगम्बर जैन विद्यालय फिरोजाबाद में प्रविष्ट हुए। सन् 1945 में आपने कक्षा 4 की परीक्षा अच्छे स्कों में उत्तीर्ण की। जब आप कक्षा 4 में थे, तब आपके ऊपर ऐसी भयंकर बीमारी का प्रकोप हुआ कि आप मृत्यु के मुंह से लौटे। लोगों ने आपको मृत समझ लिया। घर में कुहराम मच गया। किन्तु कुछ क्षणों बाद देखा गया तो आपकी श्वांस चलती हुई प्रतिभासित हुई और आपने नवजीवन प्राप्त किया।
पचायतीपुरयाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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