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________________ २७२] प्राचीन जैन स्मारक । सिंह । नंदिके उपभेद गण, गच्छ और बलि थे। उनमें इंगुलेश्वर बलि, पुस्तक गच्छ देशीगण बहुत प्रसिद्ध हुआ है। इस संघके साधुओंके साथ चन्द्रकीर्ति, भूषण तथा नंदी लगा रहता है। (१०) नं० २५८ (१०८) सन् १४३२ सिद्धेर वस्ती। सिद्धांत योगीके शिष्य श्रुतमुनिने समाधिमरण किया। श्रुतमुनिके शिष्य चारुकीर्ति थे जिन्होंने सारत्रयका संपादन किया है। (११) नं० २६८ (११३) सन् ११७८ अखण्ड वागलूपर। इसमें उन जैन गुरुओं और आर्यिकाओंके नाम हैं जो पंचकल्याणक उत्सवके लिये वेलगोलामें एकत्र हुए थे। (१२) नं० २३४ (८५) सन् ११८० । गोम्मट मंदिरके द्वारपर इस लेखमें श्री गोम्मटस्वामीकी प्रशंसामें दो श्लोक कन्नड़में कवि सजनोत्तांस कृत हैं यह प्रसिद्ध कन्नड़ कवि था जिसकी प्रशंसा केशिराजने अपने शब्दमणि दर्पणमें कवि पम्प, पन्न आदिके साथ की है। सारांश जैन शिलालेख हासन जिला एपिग्राफिका कर्नाटिका जिन्द ५-ता० हासन । (१) नं० ५७ सन् ११५५ । हेरेगू ग्राममें जैन वस्तीके सामने एक पाषाण पर । होयसालवीर नरसिंहदेवके राज्यमें उसके बड़े मंत्री व ज्येष्ठ सेनापति चाविमय्या और उसकी भार्या जकब्बेने मंदिर बनवाया। सुवर्णके चेन्न पार्श्वनाथ विराजमान किये । अष्ट प्रकारी पूजाके लिये भूमिदान दी। इस जकब्बेके गुरु मूलसंधी देशीगण पुस्तकगच्छ कुंदके नयकीर्ति सिद्धांतचक्रेश्वर थे ।
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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