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मदरास व मैसूर प्रान्त । [२७३ (२) नं० ११२ सन् ११२०-मुतत्ती, माधवराय मंदिरके नवरंग मंडपके चार खंभोंपर ।
विनयदित्य दंडनायकने होयसाल जिनालय बनवाया। उसके लिये राजा विष्णुवर्द्धन होयसालदेवने मूलसं० दे० ग० पु. ग. कुंद० मेघचंद्र त्रैवेद्यदेवके शिष्य प्रभाचंद्र सिद्धांतदेवकी सेवामें भूमि भेट की। ___ (३) नं० ११९ सन् ११७३-मरकलीग्राम, जैन वस्तीके सामने-होयसाल बल्लालदेवके राज्यमें शांतिके महामंत्री बूचि मय्या
और उसकी भार्या सान्तलेने सिगनाडके मरकल्लीग्राममें त्रिकूट जिनालय बनवाया। और उसी ग्रामको दामिल संघके अरुन्गलान्वयी श्रीपाल त्रैवेद्यके शिप्य वासुपूज्य सिद्धांतदेवके पग धोकर पूजाके लिये अर्पण किया। यह वीचे मय्या कन्नड़ नो संस्कृतका विद्वान था तथा हेगड़े चलप्पाने आम, रंग करधे व तेल मिलको सबको पूजार्थ दिया।
(४) नं० १२९ सन् ११४० ई० । मुगुलूर ग्राममें अन वस्तीकी मूतिके आसन पर । यहां श्रीपाल त्रैवेद्यदेवके श्रावक शिप्य मारिसेठी और गेबीसेठीने एक जिन मंदिर बनवाया व श्रीपार्श्वनाथनीको स्थापित किया तथा भूमि दान की।
(५) नं० १३ . करीब सन् ११४७ ई इस वस्तीके द्वार पर । श्रीअजितसेन भट्टारकका शिप्य बड़ा सर्दार पर्मादी था उसका ज्येष्ठ पुत्र भीमय्या, भार्या देवालव्वे उनके दो पुत्र थे-मसनीसेठी, व मारीसेठी। मारीसेटीने दोर समुद्रमें एक उच्च जैन मंदिर बनवाया। उसके पुत्र गोविंदने मुगाली में एक जैन मंदिर बनवाया। इसके दो पुत्र थे-विट्टीसेठी, बनाकीसेठी । इस गोविंद जिनालयके लिये महा
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