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मदरास व मैसूर प्रान्त |
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समाधिमरण ( सल्लेखना ) सम्बन्धी लेख | इन लेखों में ८० से अधिक लेख निषीदाके हैं अर्थात् अधिकतर साधु और आर्यिकाओंके समाधिमरणके लेख हैं ।
शब्द सल्लेखना मात्र तीन लेखों में है । नं० ११८, २५८ और ३८९ तथा शेषोंमें समाधि या सन्यास शब्द है । समाधिमरणके समय एक मासका उपवास नं० २५, १४३, १६७में, २१ दिनका ३३ लेखोंमें व ३ दिनका ६९ में है । ये स्मारक सन् ६०० अनुमानसे लेकर सन् १८०९ तकके हैं। इनमेंसे ६० मुनियोंके व १६ आर्जिकाओंके हैं । इनमें साधुओंके ४८ और आर्जिकाओंके ११ सातवीं व आठवीं शताब्दीके हैं
इन ४८ के नं ० हैं - १, २, ५, ६, ८, ९, ११, १५, १९, २१, ३४, ७५, ७७, ७९, ८५, ८८, ९२, ९३, ९५, ९९, १०२, १०६, १०९, १११, ११३, ११५, ११६, तथा ११ के नं ० हैं - ७, १८, २०, ७६, ९६, ९७, ९८, १०७, १०८, ११२, ११४ ।
कुछ लेखोंका सारांश ।
नं० (१) - ६०० ई० । इसमें श्री भद्रबाहु श्रुतकेवली और प्रभाचंद्र मुनि अर्थात् चन्द्रगुप्त मौर्य के समाधिमरणका वर्णन है तथा और मुनियोंका भी पीछेसे समाधिमरण हुआ है ।
७००
(११) ६५० ई० | श्री अरिष्ट नेमि आचार्य कई शिष्योंके साथ इस कटवप्र पर्वतपर आए और समाधिमरण किया तब राजा दिन्दीक मौजूद था । उसकी भार्या कंपिता नमन कर रही है ।