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प्राचीन जैन स्मारक।
/ नं० ६७ सन् ११२९ पार्श्वनाथ वस्ती। कहता है कि श्री अकलंकस्वामीने राजा हिमशीतलकी सभामें बोंडोंको परास्त किया तब पांड्य रानाने स्वामीका पद दिया । राजा हिमशीतल कांची में राज्य करता था। शायद यह पल्लव राजा था। _____ नं० १४९ सन् ११५० चंद्रगिरिका हाता व नं० ४५७ सन् १००० ब्रह्मदेवके पर हातेके बाहर कहते हैं कि वत्स्योंके राजा गरुड़ केशिरान और बालादित्य थे।
नं० ६४ सन् ११६३ शांतिवस्ती । इसमें गंधविमुक्त देव मुनिके श्रावक शिष्योंके नाम हैं। सामन्त, केदारनाकरस, कामदेव, भरत, वुचिमय्या, कोरव्वा । निम्बा, माघनंदि मुनिका श्रावक शिष्य था इसका वर्णन तेरदालके लेखपर भी आया है । (Indian Ant. XIV 44) तथा पद्मनंदि आचार्य कृत एकत्व सप्तति ग्रन्थमें इसे सामन्तरत्न कहा है । सं० नोट-हमने लिखित प्रतिमें देखा तो किसी श्लोकमें यह नाम नहीं मिला। शायद ताड़पत्रकी प्रतिमें ऐसा हो । पता लगाने की जरूरत है । यह आनन्द शुभचन्द्र के शिष्य थे जिनका समाधिमरण सन् ११२३ में हुआ है । नोट- इस लेखसे पता चलता है कि पद्मनंदि पचीसी ग्रन्थके कर्ता पद्मनंदि १२वीं शताव्दीके आचाय है)।
___ नं० ४०५ सन् १३३३ वीरगल, ईश्वर मंदिरके सामने चादरहल्लीपर । यहांके केतगोविंदका युद्ध मुमलमानों से हुआ था उसमें यह मारा गया।
नं० २५४ सन् १३९८ सिद्धर वस्ती। हरियाना और माणिकदेव पंडिताचार्यके प्रावक शिष्य थे।