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प्राचीन जैन स्मारक |
है । कुछ वर्ष हुए मरम्मत किये जानेसे यह लेख नष्ट होगया है । (२०) चामुण्डराय चट्टान- इस चंद्रगिरिके नीचे एक खुदा हुआ पाषाण है । यह बात प्रसिद्ध है कि चामुण्डरायको स्वप्न आया था कि सामने बड़े पर्वतपर श्रीगोमटस्वामीकी मूर्ति झाड़ी जंगलके भीतर छिपी हुई है, वह यहांसे तीर मारेगा तो वहीं पहुंचेगा । इस स्वप्न के अनुसार चामुण्डरायने यहांसे तीर मारके प्राचीन मूर्तिका पता लगाया । इस चट्टानपर जैन गुफाओंके चित्र हैं, नीचे नाम भी दिये हुए हैं।
दोदाबेट ( बड़ा पर्वत) या विंध्यगिरि - यह पर्वत समुद्रसे ३३४७ फुटके करीब ऊंचा है । तथा मैदानसे ४७० फुट ऊंचा है । इस पर्बतको इंद्रगिरि कहते हैं । नीचे से ऊपर पहाड़ीकी चोटी तक ५०० सीढ़ियां चली गई हैं। सबके ऊपर बड़ा दाता है जिसके चारों तरफ कोट है उसमें कोठरियां हैं जिनमें जैन मूर्तियां विराजित हैं । इस हातेके मध्य में श्री गोम्मटस्वामीकी बड़ी मूर्ति ५७ फुट ऊंची है । इस मूर्तिका मुख उत्तरकी तरफ है। जांघके ऊपर इसको आधार नहीं है । बाल ऊपर घुंघरवाले हैं। पाससे सर्प निकलकर आए हैं। मूर्तिका आसन एक कमलपर है । मूर्तिके ठीक मध्य में एक पुष्प है । कुछ पुराने निवासी कहते हैं कि यदि इसकी मापको १८ से गुणा किया जावे तो मूर्तिकी ऊंचाई, निकल आएगी । यह मूर्ति किसी वड़े पाषाणसे बनाई गई है जो यहां विद्यमान था । मिश्रदेशमें Ramases रामासीसकी मूर्ति है उससे यह मूर्ति बड़ी
। इस पर वर्षा व धूपका असर नहीं पड़ा है। यह बहुत ही स्वच्छ झलकती है। यह मूर्ति अनुमान १००० वर्ष पुरानी है तब