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मदरास व मैसूर प्रान्त | [ २१५ नीलनदी पर रामासी की मूर्ति ४००० वर्ष से अधिक पुरानी है । दक्षिण भारत में यह एक बहुत ही बढ़िया देशी शिल्प है ।
It is most remarkable work of native art in south India.
इस मूर्तिको "कुक्कटेश्वर " भी कहते हैं। इस मूर्तिका वर्णन नीचे लिखी पुस्तकों में है-
(१) यांदैय्या पिरियपट्टेनकृत संस्कृत भुजबलीशतक सन् १९५० (२) श्रवणबेलगोला के पवेहवानकृत कनड़ी भुजबलि चरितम् १६१४ (३) अनन्तकविकृत कनड़ी गोमटेश्वर चरित्रम् सन् १७८० का । (४) देवचंदकृत कनड़ी राजाबली कथा सन् १८३८ का ।
इस मूर्ति के संबंध में यह कथा प्रसिद्ध है कि भरत चक्रवर्तीने पोदनापुर में ५५५ धनुष्य ऊंची श्रीबाहुबलिजीकी मूर्ति सुवर्णमय बनवाई थी । कहते हैं कि इस मूर्तिको कुक्कुट सर्व चारों तरफ बेढ़े रहते हैं इसलिये आदमी पास जा नहीं सकता ।
एक जैनाचार्य जिनसेन थे वे दक्षिण मथुरा गए । उन्होंने इस पोदनपुरकी मूर्तिका वर्णन चामुंडरायकी माता काललदेवीको किया । तब कालदेवी ने यह नियम ले लिया कि जबतक मुझे दर्शन नहीं मिलेगा, मैं दूध नहीं पीऊंगी । इस प्रणकी खबर चामुंडरायकी स्त्री अजितदेवीने चामुण्डरायको कर दी । तब चामुण्डराय अपनी माताको लेकर पोदनापुर के लिये चला । मार्ग में श्रवणबेलगोला में ठहरा और चंद्रगिरिपर जाकर श्रीभद्रबाहुके चरण वंदे तथा चंद्रगुप्त वस्ती में श्रीपार्श्वनाथ भगवानकी बहुत भक्ति की । यात्रा करके नीचे उतरा - रात्रिको श्रीपार्श्वनाथकी भक्त पद्मावतीदेवीने चामुण्डराय और उसकी माताको स्वप्न दिया कि यदि चामुंडराम