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२०२] प्राचीन जैन स्मारक । लिखा है कि इसका पुत्र मरुदेव था। उसकी भार्या महामती महादेवी थी । वह अपने पतिके साथ स्वर्ग गई।
(४९) नं० १०० ता; ११४५ ई० ग्राम बोगादीमें ध्वंश जैन मंदिरके पास एक पाषाणपर । राना विष्णुवर्द्धनके राज्यमें उनका बड़ा मंत्री हिसाब करनेवाला माधव या मादिराजा था यह श्री अजितसेन भट्टारकका शिष्य जैन श्रावक था । इस मादिरानाकी भार्या उमयव्वे या उमयक्का थी यह मादिराजा विनमय्येका पुत्र था। इसके गुरुकुलकी वंशपरम्परा नीचे प्रमाण दी हुई है-श्री समंतभद्रबड़े वक्ता, देवाकलंकपंडित बौद्धोंके विजेता, सिंहनंदि मुनि, बड़े तार्किक परवादीमल्ल वादिराजदेव, यह बड़े नैयायिक थे। यह चालुक्य राजाकी राज्यधानीमें परवादियोंके विजयी थे व बड़े कवि थे, अजितसेन योगीश्वर यह बड़े योगी थे, मल्लिषेण मलधारीदेव जिनको अनेक राजा पूजते थे, श्रीपाल मुनि त्रैविध, मादय्या हेगड़े या मादिराजाने तुंगभद्रा नदीके तटपर श्रीकर्ण जिनालय बनवाया। महाराज होयसालदेवने भोगवती ग्राम भेटमें दिया।
(५०) नं० १०३ ता० ११२० करीब । सुकदरे ग्राममें लक्कम्मा मंदिरके सामने पाषाणपर। माता एचलेके पुत्र आत्रेयगोत्री जक्कीसेठीने अपने सक्कदरे ग्राममें एक जिनालय बनवाया व / उसके लिये एक सरोवर भी बनवाया तथा श्रीदयापालदेवके चरण धोकर भूमिदान की । इसके गुरु अमितमुनिपति थे जो दाविल संघमें हुए जिसमें समंतभद्र, भट्टाकलंक, हेमसेन, वादिराज व मल्लिघेण मलधारी हुए। इस एपिग्रेफिका करनाटिकाकी भूमिकामें नीचे लिखी जानने योग्य बातें दी हैं