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१७६] प्राचीन जैन स्मारक । सामना किया और कहा कि आधीनता स्वीकार करो परन्तु इरियमाने नहीं माना और युद्धको आया। गंगने इरियमाको हरा दिया
और विजय प्राप्त की तब वह भाग गया। उनका दूसरा सर्दार दामन सामने आया वह गंगसे मार डाला जाता परन्तु वह कांचीमें भाग गया । गंगने ऐसी वीरतासे युद्ध किया कि वह सामना न कर सका। गंगने नरसिंगवर्मा, पल्लव व दूसरे चोलों के सब सेनापतियोंको भगा दिया और वे सब देश फिर ले लिये जो चोलोंने गंगवंशी राजाओंसे छीन लिये थे । गंगराजा सच्चा गनभक्त था । इसने सर्व देश विष्णुवर्द्धनको सुपुर्द कर दिये । महाराज विष्णुवर्द्धनने प्रसन्न हो गंगराजको टिप्परका प्रदेश इनाममें दिया। यह गंगराजा ऐसा सच्चा जैनी व धर्मात्मा था कि इसने वह प्रदेश धर्मार्थ कानृरगण तिन त्रिणिक गच्छके श्रीमेवचंद्र सिद्धांतदेव जैन आचाके चरणोंके सामने दान कर लिया।
सं० नोट गंगराजाके धार्मिक सत्य श्रवणबेलगोलाके लेखोंसे बहुत प्रगट होते हैं। एक जेन राजा कैसा युद्ध कुशल होकर भी धर्मात्मा होता है, इस बात का यह राजा नमूना है। इसका भिन्न जीवनचरित्र प्रगट होने योग्य है।
(१०) ता० नन नन्गुड-गम तगदुरु, चन्नाकेशव मंदिरके बाहर भीतमें एक स्तंभार नं० १३३ सन् ११७० द्रविलसंघमें नंदिसंघके अरुंगलान्वयके श्री मुनि अजितसेन देव आचार्य हुए।
श्रीमद्राभिलसंघेऽस्मिन् नंदिसंवेऽल्यरुनगल: । अन्वयो भाति निःशेषशास्त्रवाराशिपारगैः । ...अजितरोन मुनिपो हि आचार्यताम प्राप्तवान् ॥