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मदरास व मैसर प्रान्त । [१७७ (११) ता० तिरुमकुदल नरसीपुर-नं० १०५ शाका ११०५ (सन् ११८३) बहुत उपयोगी जैन शिलालेख । यह गौंदीवास बनपुरामें हुंडी सिद्धन चिकेके खेतके नाकेपर पाषाण । इसमें द्रमिलसंघके नंदिसंघ अरुंगलान्वयके मुनि चन्द्रप्रभका समाधिमरण है।
इस शिलालेखमें आचार्य श्रीवर्द्धदेव या तुम्बल्लूराचार्यका वर्णन है जिन्होंने कनड़ी भाषामें तत्त्वार्थसूत्रपर टीका लिखी है । इस आचार्यकी प्रशंसा डंडी कविने की है । इसीमें यह भी कथन है कि अकलंकस्वामी ने कांचीके रामा हिमशीतलकी सभामें बौद्धोंको वादमें परास्त किया ( ९मी श० ) जिससे बौद्ध लोग भारतवर्ष छोड़कर सीलोनमें चले गए। इसीमें यह कथन है कि इंद्रनदिने प्रतिष्ठाकल्प और ज्वालिनीकल्प रचा, यह संस्कृतमें हैं जिनके श्लोक आगे दिये हैं।
(१२) ता० ननुजनगुड-नं० ४३ सन् १३७१ ग्राम एचिगनहल्ली के पूर्व भरि चावड़ीके पास । इसमें मेघचंद्र मुनिके समाधिमरणका लेख है। इसीमें बहुत विद्वान मुनि पार्श्वदेव और बाहुबलिदेवका भी वर्णन है । मेघचंद्रके शिप्य माणिकदेवने स्मारक बनवाया।
(१३) नं० ६४ सन १३७१ त्रिन्यापुर या हलहल्ली में बरदराजा स्वामी मंदिरके द्वारके उत्तर पाषाणमें। वंगुलेश्वर वंशमें पुस्तकगच्छी श्रुतमुनिका समाधिमरण शाका १२७८ । माघनंदि सिद्धांतदेव, श्रुतकीर्तिदेव, मुनिचन्द्रदेव, श्रीपार्श्वदेव और बाहुबलि मुनि ये सब श्रुतमुनिके शिष्य थे। श्रुतमुनिके पुत्र कीर्तिव्रतींद्रने शाका १२७८में समाधिमरण किया। इस लेखमें अभ्यचंद्र मुनिकी प्रशंसा है । इसी लेखमें पेरूमलदेवने शाका १२७४ में व उसकी भावन अल्लाम्बाने शाका १२९०में समाधिमरण किया
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