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________________ मदरास व मैसूर प्रान्त | [ १७५ (३) नं० ११३ शाका ६३५ सन् ७१३ गंगवंशी राजा शिवमार या नवकाम या पृथ्वी कोंगुणीवर्माने अपने राज्यके ३४वे वर्ष दान किया । (४) तालुका तिरुमकुदल नरसीपुर-नं० १ - शाका ६४८ सन् ७२६ यह शिलालेख गंगवंशी प्राचीन है तथा यह विकटोरिया जुबली इंस्टीट्यूट मैसूर शहर में विद्यमान है । राजा श्रीपुरुष या मुत्तरस या पृथ्वी कोंगणीवर्माने जो शिवमारका पोता था अपने राज्य के प्रथम वर्ष में दान किया । (५) नं० ९३ सन् ९७४ - राजा मारसिंह गंगने श्रीअजित सेन भट्टारक जैनाचार्य के चरणोंके समीप चंकापुर (घाड़वाड़ जिला) में समाधिमरण किया | (६) ता० मांडया में नं ० १०७ व नं० (७) ता० ननूजनगुडमें नं० १८३ सन् ९७७ के गंगवंशी राजमल परमानंदी संबंधी हैं जिसका मंत्री चामुण्डराय था । इसमें गंगवंशके राजाओंकी नामावली दी है जो पहले मैसूर के इतिहास में दी जा चुकी है । J ' (८) ता० तिरुमकादल नरसीपुर । नं० ४४ सन् १००७ होयसाल वंशका सबसे प्राचीन | (९) ता० मतवल्ली नं ० ३१ ता० १११७ | इन दोनों शिलालेखों में विष्णुवर्द्धन महाराजका सम्बंध है । उसके मंत्री और सेनापति गंगवंशी गंग राजा जैनधर्मीने चोलोंसे तलकाडका देश ले लिया । गंगराजाने गंगवाड़ीसे तिगुलोंको भगा दिया और वीरगंगकी उपाधि सहित विष्णुवईनको स्थापित रक्खा । तलकाडके युद्ध में चोलोंकी तरफसे इरियमा सेनापति था तब गंगराजाने उसका
SR No.010131
Book TitleMadras aur Maisur Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kishandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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