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मदरास व मैसूर प्रान्त |
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[द आधीन जो भाग तोंडइमंडलमूका था उसमें यह जिला शामिल था। समुद्रगुप्ताका चौथी शताब्दीका अलाहाबादका लेख कहता है कि उस समय कंजीवरम् में राजा विष्णुगोप राज्य करते थे । छठी शताब्दी के अंतमें पलवराजा सिंहविष्णु था । उसका पुत्र महेन्द्रवर्मन प्रथम था । उसने तिरुवापुलियर में शिवमंदिर बनवाया था । तामील भाषाके पेरिया पुराणभर में इस मंदिरके सम्बंध में कथा दी है । इस पुराणमें ६३ शिवमती साधुओंके चरित्र हैं । इसीमें लिखा है कि अप्पर नामका शैवयोगी था उसको पहले तो पलक राजाने कष्ट दिया परन्तु फिर उसकी प्रतिष्ठा की । यह महेन्द्रबर्मन प्रथम था । यह महेन्द्रवर्मन मूलमें जैनी था परन्तु अप्पर ने इसको शैवमती बना लिया तब इस राजाने पाटलीपुर ( तिरुपावु लुथरका प्राचीन नाम यह है । ) में जैन मंदिरको ध्वंश किया और उसके स्थान में शिव मंदिर बनाया, उस मंदिरको अब गुणधर विच्छरम् कहते हैं । नौमी शताब्दी में गंग पल्लवोंने राज्य किया । उनके ताम्रपत्र फ्रान्स राज्य के बाहर स्थानपर व नौमी शताब्दी के दूसरे तीन तिरुक्कोयिलूरमें पाए जाते हैं । १० वीं शताब्दी में तंजोरके चोलोंने राज्य किया । राजा राजादित्यको मलखेड़के राष्ट्रकूटोंने मार डाला तब कृष्ण तृ० ने चौलोंपर हमला किया था और कंजीवरम् व तंजोर ले लिया था । फिर चोलोंने १० से १३ शताब्दी तक राज्य किया । उनका प्रथम राजा राजाराज प्रथम ९८५ से १०१३ ई० तक हुआ व अंतिम राजा राजराम तृ० (सन् १२१६-१२३९) था । इसको सर्दार कोव्वे रुन् जिन्ने कैदकर लिया तब द्वार समुद्रके होयसाल राजा नरसिंह द्वि० ने छुड़ाया ।