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प्राचीन जैन स्मारक । फिर पांडवोंने, फिर केरलोंने, फिर होयसालोंने, पीछे मुसल्मानोंने राज्य किया। यहां : ओडइपर सर्दारोंने राज्य किया। उनमेंसे एकको विजयनगरके हरिहर द्वि० ने जीत लिया। उसके नामका लेख सन् १३८२ का पाया गया है ।
जैन लोग-इस जिलेके गजटियर जिल्द १ सन् १९०६में पृष्ठ ७६में जो हाल दिया है वह नीचे प्रमाण है__इस जिलेमें करीब ५००० जैनी हैं। उनमेंसे टिंडीवनम् तालुकामें करीब ४०० ० हैं व ७०० बिल्लुपुरमें हैं। कुछ वृद्धचलम् और कल्चकुर्ची ता० में हैं। इसमें संदेह नहीं कि प्राचीनकालमें जैन धर्म यहां बहुत जोरमें था। यह भी कहावत है कि यहां श्री कुंदकुंदाचार्य और उमास्वामी महाराजने वास किया था जो विक्रमकी प्रथम शताब्दीमें दिजैन आचार्य होगए हैं।
गमीलपुराण पिरियपुराणम्में लिखा है कि पाटलीपुत्र ( वर्तमान नाम तिरुपायुलियूर है ) में एक जैन मठ और एक विद्यालय था। शैव साधु अप्पर जैन विद्यालयमें विद्यार्थी था। यह पहले जैन था परंतु इसकी भगिनीने इसे शिवमतमें बदल लिया। स्थानीय राजा महेन्द्रवर्मा प्रथम था। यह जैन था परन्तु इसने अपना मत बदलकर शिवमत कर लिया तब इस राजाने जैनियोंका ध्वंश किया । इसके पीछे फिर जैनियोंका प्रभाव जमा । कुछ काल पीछे फिर नैनियोंको नष्ट किया गया जिसका वर्णन मैकेंनी साहबके संग्रहीत लेखोंमें है।
सन् १.४७८ ई० में जिंजीका राजा वेंकटाम येट्टइ वेंकटापति था। यह कवरई जातिमेंसे नीच जातिका था।