________________
प्राचीन जैन स्मारक. 1..
(१५) दक्षिण अकर्ट जिला ।
यहां मूमि ५२१७ वर्गमील है । चौहदी है - पूर्व में बंगाल खाड़ी, दक्षिणमें तंजोर व त्रिचनापली, पश्चिममें सालेम, उत्तरमें उत्तर अर्काट और चिंगलपेट । फ्रांसीस लोगों के अधिकारमें जो पांडिचरी है वह इसी जिलेमें है ।
८४ ]
इतिहास - यहां इतिहासके पूर्वके लोग रहते थे । ये लोग कलरायन पहाडियों पर पाए जानेवाले पाषाणकी कोठरियोंके बनानेबाले थे । समाधिस्थान इतिहास के पूर्वके यहां बहुत हैं जिनके भीतर हड्डी, मिट्टी के वर्तन व लोहा मिलता है । सबसे बढ़िया देवनूर में हैं। जिंजीसे पश्चिम ७ मील सत्तियमंगलम् में अनुमान १२ हैं । सबसे बड़ा स्थान ३० फुट व्यासमें व २४ पाषाणोंका बना है । सित्तममुंडी से दक्षिण बरिक्कल, अत्तियूर, टोचनपट्टू, यंडव समुद्रम् व सेंजीक्कन्नटूर ग्रामोंमें भी ऐसे स्थान हैं तथा नम्बई में हैं जो तिसक्कोयिलोरसे उत्तर पश्चिम ११ मील है । तथा कल कुर्ची के पलंजमरुकु, कोंगरई व कुगईयूर ग्रामों में और संसे बालुका के कुंडलूर में है जहां ४० से ५० तक हैं ।
तिरुवन्न मलई व तीरुक्कोयिल्लूर में जो समाधिस्थान हैं उनके सम्बन्धमे यह प्रसिद्ध है कि ये ६०००० ऋषियोंके निवासस्थान हैं। तीरुक्कोयिलूर के देवनूर स्थान में जो समुदाय है उनमें एक बड़ा पाषाण १६ फुट ऊंचा व ८ फुट चौड़ा ६ इंच मोटा खड़ा है । इसको कचहरी काल या सुननेवाला पाषाण कहते हैं ।
इतिहास के समय का पता पछवके राजाओं तक लगता है जो कंजीवरम् में ४थी से ८वीं शताब्दी तक राज्य करते थे । इस वंश के