________________
रूपनारायण पाण्डे ने रहस्पवाद को मानव की उस प्रांतरिक प्रवृत्ति का प्रकाशन माना है जिससे वह परम सत्य परमात्मा के साथ सीधा प्रत्यक्ष सम्बन्ध जोड़ना चाहता है।
उपर्युक्त परिभाषामों को समीक्षात्मक दृष्टि से देखने पर यह पता चलता है कि विद्वानों ने रहस्यवाद को किसी एक ही दृष्टिकोण से विचार किया है । किसी ने उसे समाजपरक माना है तो किसी ने विचारपरक, किसी ने अनुभूविजन्य माना है तो किसी ने उसकी परिभाषा को विशुद्ध मनोविज्ञान पर आधारित किया है तो किसी ने दर्शन पर, किसी ने उसे जीवन दर्शन माना है, तो किसी ने उसे व्यवहार प्रधान बताया है। 2. पाश्चात्य विद्वानों की दृष्टि में रहस्यवाद
M.G. R. Alliert Forges ने रहस्यवाद को Theology (ईश्वरीयशास्त्र) से सम्बद्ध कर कहा है कि ये दोनों विधायें विज्ञानों की राशी कही जा सकती है । R. L. Nettleship ने यथार्थ रहस्यवाद को अनुभूतिजन्य प्रतीति का एकांश बोध स्वीकार किया है जो किसी अधिक वस्तु का प्रतीक मात्र है-True mysticism is the consciousness that everything that we cxperience is an element and only an eliment in fact, i. e, that in being what it is, it is symbolic of some thing more. Walter T. Stace ने रहस्यवाद को चेतना से सम्बद्ध कर उसे sensory intellectual conscious. ness कहा । फ्लीडर (Fleiderer) ने रहस्यवाद की भावात्मक अभिव्यक्ति को उपस्थित करते हुए उसे पात्मा और परमात्मा के एकत्व का प्रतीक माना है । यहां उन्होंने रहस्यवाद का धार्मिक प्रथवा आध्यात्मिक दृष्टि से विश्लेषण किया हैMysticism is the immediate feeling of the unity of the self with God; it is nothing but the fundamental feeling of religion. The religious life is at its very heart and centre."
Pingle Panthison (पिंगले पाधिजन) ने लिखा है--"रहस्यवाद उन मानवीय प्रयत्नों से सम्बद्ध है जो चरम सत्य को ग्रहण करने के प्रयत्न में होता है
1. भक्ति काव्य में रहस्यवाद, पृ. 349. 2. Mystical Phenomena, London, 1926, P.3 3. Mysticism in Keligion by Dr. M. R. Inge, New-York,
P. 25. 4. The Teachings of the Mystics, Newyark, 1960, P. 238. 5. Mysticism in Religion by Dr. Dean Inge, P. 25