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साथ कीतिकार ने रहस्यवाद को एक माचार प्रधान अनुशासन बनाकर उसे ईश्वर से एकता प्राप्त करने का एक साधन बताया है। प्रो. रागडे के अनुसार रहस्यवाद अन्तनि के द्वारा परमात्मा का साक्षात्कार कहा जा सकता है । मा० रामचन्द्र शक्ल के अनुसार साधना के क्षेत्र में जो अद्वैतवाद है, काव्य के क्षेत्र में वही रहस्यवाद है। जयशंकर प्रसाद के अनुसार काव्य में प्रात्मा की संकल्पात्मक अनुभूति की मुख्य धारा का नाम रहस्यवाद बताया है।
डॉ० रामकुमार वर्मा ने रहस्यवाद को अन्तहित प्रवृत्ति का प्रकाशन बताते हुए कहा है-रहस्यवाद जीवात्मा की उस अन्तहित प्रवृत्ति का प्रकाशन है जिसमें वह दिव्य और अलौविक शक्ति से अपना शान्त और निश्छल सम्बन्ध जोड़ना चाहती है पौर यह सम्बन्ध यहां तक बढ़ जाता है कि दोनों में कुछ भी अन्दर नहीं रह जाता। प्रा० परशुराम चतुर्वेदी ने रहस्यवाद की व्यापकता को स्पष्ट करते हुए लिखा है-"रहस्यवाद एक ऐसा जीवन दर्शन है जिसका मूल आधार किसी व्यक्ति के लिए उसकी विश्वात्मक सत्ता की प्रनिर्दिष्ट वा निविशेष एकता वा परमात्म तत्व की प्रत्यक्ष एवं अनिवचनीय अनुभूति में निहित रहा करता है और जिसके अनुसार किये जाने वाले उसके व्यवहार का स्वरूप स्वभावतः विश्वजनीन एवं विकासोन्मुख भी हो सकता है। महादेवी वर्मा-"रहस्यानुभूति में बुद्धि के ज्ञेय को ही हृदय का प्रेय मान लेती हैं। डॉ. त्रिगुणायत के अनुसार जब साधक भावना के सहारे प्राध्यात्मिक सत्ता की रहस्यमयी अनुभूतियों को वाणी के द्वारा शब्दमय चित्रों में सजाकर रखने लगता है, तभी साहित्य में रहस्यवाद की सृष्टि होती है । डॉ. प्रेमसागर ने रहस्यवाद को प्रात्मा और परमात्मा के मिलन की भावात्मक अभिव्यक्ति कहा है । डॉ० कस्तूरचन्द कामलीवाल प्राध्यात्मिकता की उत्कर्ष सीमा का नाम रहस्यवाद निश्चित करते हैं। डॉ० रामकुमार वर्मा के स्वर में स्वर मिलाकर डॉ०
1. Studies in Vedanta, Boumbay. PP, 150-160 2. Mysticism in Maharashtra, PP. 1-12. 3. हिन्दी काव्य में रहस्यवाद, प्रा० रामचन्द्र शुक्ल
काव्य, कला तथा अन्य निबन्ध-जयशंकर प्रसाद 5. कबीर का रहस्यवाद, पृ 6. 6. रहस्यवाद, पृ. 25. 7. महादेवी का विवेचनात्मक गद्य, 10. कबीर की विचारधारा-डी० त्रिगुणायत, 11. हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि, पृ. 476. 12. हिन्दी पद संग्रह, पृ. 20. (प्रस्तावना)