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स्थिति को छोड़ा है।' वक्तराम साह ने 'इन कर्मों से मेरा जी करदा हो ।' कहकर कर्मों को दूर करने के लिए कहा है और दौलतराम ने छोड़ दे या बुद्धि मोरी, वृथा तन से रति जोरी' मानकर शरीरादि से मोह नष्ट करने के लिए आवश्यक माना है ।"
।"
को नाम को नाम कल्पतरु
"रक्षिष्यतीति विश्वासः " का अर्थ है--- -- भक्त को यह पूर्ण विश्वास है कि भगवान हमारी रक्षा करेंगे। कबीर को भगवान मे दृढ़ विश्वास हैं- "अब मोही राम भरोसो तेरा, और कौन का करो निहारा तुलसी को भी पूरा विश्वास है - " भरोसो जाहि दूसरो सौ करो। मोको तो कलि कल्यान करो | "4 सूर ने भी 'को को न तरयो हरि नाम लिये' कहकर विश्वास व्यक्त किया है। मीरा को विश्वास है कि हे प्रभु, मैं तो प्रापके शरण हूँ, भाप किसी न किसी तरह तारेंगे ही। एक अन्यत्र पद में मीरा विश्वास के साथ कहती है— हरि मोरे जीवन प्रान प्रधार भौर भासिरो नाही तुम बिन तीन लोक मंझार 18
नवलराम को भी विश्वास है कि वीतराग की शरण में दूर हो जायेगे और मुक्ति प्राप्त कर लेंगे ।" द्यानतराय को भी जिनदेव समान अन्य कोई सामर्थ्यवान देव नहीं मिला । केवल जीवनि को तारने में समर्थ हैं । कबीर तुलसी के समान द्यानतराय को भगवान में पूर्ण विश्वास है- - अब हम नेमि जी की शरण और ठौर मन लगत है ब्रांड प्रभु के शरन ।
राम
1. विनय पत्रिका, 174.
2.
"गोप्तृत्व वरण" का तात्पर्य है- एकान्त मे भवसागर से पार होने के लिए भगवद्गुणों का चितन करना । कबीर ने 'निरमल राम गुण गावे, सो भगतां
हिन्दी पद संग्रह, पृ. 165, 223.
कबीर ग्रन्थावली, पृ. 124.
विनय पत्रिका, 226.
सूरसागर, पद 89.
मीरा की प्रेम साधना, पृ. 260, पद 14 वां, पृ. 262.
हिन्दी पद संग्रह. पृ. 174
3.
4.
5.
6.
7.
8.
9. हिन्दी पद संग्रह, पू. 140.
रहने से सभी पाप तीनों भवनी में जिनेन्द्र ही भव
यानतराय संग्रह, कलकत्ता, 28 वां पद, पृ. 12.