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सेरे मन भाव' के माध्यम से इसका वर्णन किया है । तुलसी ने 'कृपा सोधो कहाँ बिसारी राम । जेहि करुना मुनि श्रवन दीन दुःख धावत हो तजि धाम' लिखकर राम के गुणों का स्मरण किया है। मीरा में शरण अब तिहारी जी मोहि राखों कृपानिधान कहकर प्रभु के गुणों का वर्णन किया है ।"
इसी प्रकार वस्तराम साह अपने प्रभु के प्रतिरिक्त इस जग में दूसरों को दानी नहीं समझते हैं । उसी की कृपा से उनके हृदय मे अनन्त सुख उपजा हैतुम दरसन तें देव सकल मध मिटि है मेरे ||
कृपा तिहारी तें करुरणा निधि, उपज्यो सुख अछेव । अब लौ निहारे चरन कमल की करी न कबहू सेव ॥ प्रवहू सरनं प्रायो सब छूट गयो अहमेव ॥ तुम से दानी और न जग मे, जाचत हो तजि भेव ।
वक्तराम के हिये रहो तुम भक्ति करन की टेब 114
"मात्मनिक्षेप" का अर्थ है। भक्त स्वयं को भगवान के प्रधीन कर दे । कबीर ने 'जो पं पतिव्रता है नारी कैसे ही रहौसी पियहि प्यारी । ' तन मन जीवन सौपि सरीरा । ताटि सुहागिन कहै कबीरा' से श्रात्मनिक्षेप की शर्त मान ली । तुलसीदास ने भी 'मेरे रावरिये गति है रघुपति बलि जाउ । निलज नीच निरधन निरगुन कहूं जग दूसरो न ठाकुर लाउ' कहकर स्वयं को प्रभु के लिए समर्पित कर दिया है। 8 मीरा भी "मैं तो यारी सरण परी रे रामा ज्यू तारे त्यू तारा। मीरा दासी "राम भरोसे जम का फदा निवार' कहकर पूर्णतया भगवान के अधीन है उसे तारना हो वैसे तारो ।" जैन कवि भी स्वयं को भगवान के अधीन कर उनसे भाव विह्वल हो मुक्ति की कामना करते दृष्टिगोचर होते है । वख्तराम साह - 'तुम विन नहि तारं कोइ । दीन जानि बाबा वस्ता कँ, करो उचित है सोई' कहकर द्यानतराय" - अब हम नेमि जी की शरन । दास खानत दयानिधि प्रभु, क्यो तजेंगे मरन' श्रौर 'अब मोहे तार
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कबीर ग्रन्थावली, पृ. 127.
विनय पत्रिका, 93
मीरा की प्रेम साधना, पृ. 260-61.
हिन्दी पद संग्रह, पृ. 163.
कबीर ग्रन्थावली, पृ. 133.
विनय पत्रिका, 153,
मीरा की प्रेम साधना, पृष्ठ 259.
हिन्दी पद संग्रह, पृ. 164,
8.
9. वही, पृ. 140.