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________________ 245 2. प्रपत्त-भावना डॉ. रामकुमार वर्मा ने 'कबीर का रहस्यवाद' में रहस्यवाद की भूमिका चार प्रमुख तत्वों से निर्मित बतलायी है-पास्तिकता, प्रेम और भावना, गुरु की प्रधानता और मार्ग । ये चारों तत्त्व प्राचीन भारतीय साहित्य की प्राध्यात्मिक पौर दार्शनिक परम्परा से जुड़े हुये हैं। 'मास्तिकता' का तात्पर्य है प्रात्मा और परमात्मा के मस्तित्व पर विश्वास करना । 'प्रेम और भावना' का सम्बन्ध अपने भाराध्य के प्रति व्यक्त माध्यात्मिक प्रेम से है। इस प्रेम के अन्तर्गत प्रपत्ति मूलक दाम्पत्य प्रेम की अभिव्यक्ति की जाती है। 'गुरु' परमसत्य का साक्षात्कार करने वाला होता है और 'मार्ग' मे साक्षात्कार करने का पथ निर्दिष्ट किया जाता है । उपयुक्त तत्त्वों में से हम प्रास्तिकता और गुरु पर पीछे विचार कर चुके हैं। प्रेम को हम दूसरे शब्दों मे भक्ति-प्रपत्ति कह सकते हैं। प्रपत्ति का तात्पर्य है अपने इष्टदेव के शरण में जाना । साधक की भक्ति उसे इस प्रपत्ति की मोर ले जाती है । अनुकूल का संकल्प अथवा व्यवहार करना, प्रातिकूल्य का छोड़ना, भगवान रक्षा करेंगे ऐसा विश्वास होना, भगद्गुणों का वर्णन, भात्म निक्षेप और दीनता इन छः अंगों के माध्यम से भक्त अपने आराध्य की शरण में जाता है। मध्यकालीन हिन्दी सन्तों में प्रपन्न भक्तों के लगभग सभी गुण उपलब्ध होते हैं। "अनुकूल्यस्म संकल्प" का तात्पर्य है भगवान के अनुकूल माचरण करना, ऐसे सत्कार्य करना जो भगवद्भक्ति के लिए मावश्यक हों। कबीर का चिन्तन है कि प्रात्मा की विशुद्ध परिणिति हरि का दर्शन किये बिना नहीं हो सकती-'हरि न मिले बिन हिरदै सूध । उसके बिना तो वह जल में से से धूत निकालने के समान असम्भव है-'हृदय कपट मुख ग्यांनी, झूठे कहा विलोबसि पानी। तुलसी पश्चात्ताप करते हुए यह प्रतिज्ञा करते हैं कि अभी तक तो उन्होंने अपना समय व्यर्थ गंवाया पर अब चिन्तामरिण मिल गया है । उसे यों ही व्यर्थ नहीं जाने देंगे। अब लों नसानी, अब न नसंहों। राम कृपा भाव-निसा सिरानी, जागे फिर न डस हों। पायेऊ नाम चारु चिन्तामनि, उरकर ते न ससेहों। स्याम रूप सुचि रुचिर कसौटी, चित्त कंचनहि कसैहों। 1. पांचरात्र, लक्ष्मी संहिता साधनांक, पृ. 60. 2. कबीर ग्रन्थावली, पृ. 214. 3. वही, पृ. 332.
SR No.010130
Book TitleMadhyakalin Hindi Jain Sahitya me Rahasya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpalata Jain
PublisherSanmati Vidyapith Nagpur
Publication Year1984
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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