________________
142
को कर सोच जिय ! मन में वा दिन ॥" हे मूढ़ प्राणी जिस दिन भांषी चलेगी उसमें तुम्हें व तुम्हारे परिवार को एवं सम्पत्ति को वह जाना पड़ेगा इसलिए तू इन सब में चित मत लगा और निर्वाण प्राप्ति का मार्ग ग्रहण कर ।
मैया भगवतीदास ने जीवन की तीनों अवस्थाओंों का सुन्दर चित्रण करके... संसारी को उद्घोषित किया है
भूलि गयी तिज रूप अनुपम, मोह- महामद के मतवारे ।
हू दान बन्दो भव के तुम वेतन क्यों नहीं चेतन हारे || 2 तुम्हारे घर में चिदानन्द बैठा है उससे रूप को देखने-परखने का उपम्य कीजिए-चिनन्द भैया विराजित है घट मांहि,
वाके रूप लखिये को उपाय कछु करिये ॥
पर प्रदायों के संसर्ग से भ्रात्म धर्म को मत भूल | सम्यग्ज्ञानी होकर परमार्थ प्राप्त कर और शुद्धानुभव रस का पान कर 13
व्यक्ति भोगों की और सरलता पूर्वक दौड़ता है। उसकी इस प्रवृत्ति को स्पष्ट करते हुए कविवर दौलतराम ने " मान ले या सिख मोरी, भुकं मत भोगन श्रोरी" कहकर भोगवासना को मुजंग के शरीर (भोग) के समान बताया है जो देखने में तो सुन्दर लगता है पर स्पर्श करते ही इस लेता है और मर्मान्तिक पीड़ा का कारण बनता है । जिस प्रकार तोता भाकाश में चलने की अपनी गति को भूलकर नलिनी के फंदे में फंसता है और पश्चाताप करता है उसी प्रकार रे आत्मत्, तू अपने स्वरूप को भूलकर दुःख सागर में डुबकियां लगाता है। 5 इसलिए वे चेतन को उस श्रोर से मुड़ने के लिए कहते हैं
1.
2.
3.
4.
5.
वही, अष्टपदी मलहार, पृ. 240.
ब्रह्मविलास, शत प्रष्टोत्तरी, 50-54 पृ. 19-20.
अंसा, भ्रम न भूलिये पुद्गल के परसंग । अपनो काज संवारिये, प्राय ज्ञान के अंम ॥ प्रायज्ञात के अंग माप दर्शन कर लोजे । कीजे विस्ता भाव' शुद्ध प्रनुभो रस पीजे ।
दीजे चउविधि दान, अहो शिव खेत बसया ।
तुम त्रिभुवन के राय, भरम जिन मूलहू मैया 217 111 वही, 74, पृ. 24.
अध्यातम पदावली पृ, 340.
अपनी सुधि मूल भाप श्राप दुख उपायो ।
जसे शाम तम चाल बिसरि, मलिनी लटकायी । दोलतराम, मध्यात्म पदाreft, g. 340.