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अपना अनुराग प्रगट किया है । वह शील रूप लंगोटी में संयम रूप दोरी से गांठ लगाता है भमा और करुणा का नाद बजाता है तथा मान रूप गुफा में दीपक संजोकर चेतन को जगाता है । कहता है, रे चेतन, तुम ज्ञानी हो और समझाने वाला सद्गुरु है तब भी तुम्हारे समझ में नहीं पाता, यह आश्चर्य का विषय है।
सद्गुरु तुमहिं पढ़ा चित दै अरु तुमहू ही ज्ञानी,
तबहूं तुमहिं न क्यों हू भाव, चेतन तत्व कहानी। पांडे हेमराज का गुरु दीपक के समान प्रकाश करने वाला है और वह तमनाशक पोर बरागी है। उसे पाश्चर्य है कि ऐसे गुरु के वचनों को भी जीवन तो सुनता है और न विषयवासना तथा पापादिक कर्मों से दूर होता है। इसलिए वह कह उठता है-'सीष सगुरु को मानि ले रे लाल ।'
___रूपचन्द की दृष्टि मे गुरु-कृपा के बिना भवसागर से पार नहीं हुप्रा जा सकता । ब्रह्मदीप उसकी ज्योति में अपनी ज्योति मिलाने के लिए प्रातुर दिखाई देते हैं-'कहै ब्रह्मदीप सजन समुझाई करि जोति मे जोति मिलावै ।'
___ब्रह्मदीप के समान ही मानंदधन ने भी 'अवधू' के सम्बोधन से योगी गुरु के स्वरूप को स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है। मैया भगवतीदास ने ऐसे ही
1. ता जोगी चित लावों मोरे बाला ॥
संजम डोरी शील लंगोटी घुलघुल, गाठ लगाले मोरे बाला । ग्यान गुडिया गल विच डाले, प्रासन दढ जमावे ॥1॥ क्षमा की सौति गले लगावै, करुणा नाद बजावे मोरे वाला। ज्ञान गुफा में दीपक जो के चेतन अलख जगांवे मोरे बाला ॥
हिन्दी पद संग्रह, पृ. 99. 2. गीत परमार्थी, परमार्थ जकड़ी संग्रह, जैन ग्रन्थ रत्ताकर कार्यालय, बम्बई, 3. गुरु पूजा 6, वृहज्जिनवाणी संग्रह, मदनगंज, किशनगढ़, सितम्बर, 1955,
पृ. 201. 4. ज्ञानचिन्तामणि, 35, बीकानेर की हस्तलिखित प्रति. 5. सुगुरु सीष, दीवान बधीचन्द मंदिर, जयपुर, गुटका नं. 161. .. गुरु बिन भेद न पाइय, को परु को निज वस्तु ।
गुरु बिन भवसागर विषइ, परत गहइ को हस्त ।। अपभ्रंश और हिन्दी में
जैन रहस्यवाद. पृ. 97. 7. मनकरहारास, मामेरशास्त्र भण्डार, जयपुर की हस्तलिखित प्रति. 8. मानधन बहोत्तरी, 7.