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Aatur मरम्मत करने वालों ने घुटने टेक दिये। जब तक शरीर रूप करता त्या या तब तक सभी को वह प्रिय था। पर जैसे ही वह पुराना हुआ, उसका रंगविरंग हुआ, तो अब उसे कोई देखना ही नहीं चाहता। इसलिए हे भाई, मिष्या 'तत्त्व रूप मोटे धागे को महीन कर उसे सुलझा लो और सम्यग्ज्ञान को उत्पन्न कर लो । उसका भन्त तो ईंधन में होना निश्चित ही है, बस, प्रात:काल समझकर पूरे प्राश्मविश्वास के साथ सम्यग्ज्ञान को प्राप्त करने का प्रयत्न करो ।
" चरखा चलता नाही (१) चरखा हुधा पुराना (वे) ॥ मय दे दो हालत लागे, उर मदरा खखसना । छीदी हुई संखड़ी पांसू, फिरं नहीं मनमाना ॥ ॥ रसना तकली ने बल खाया, सो अब कैसे खूटे | अबद सूत सुधा नहीं निकस, घड़ी-घड़ी पल टूटै ॥2॥ मायु माल का नहीं भरोसा, मंग चलाचल सारे । रोज इलाज मरम्मत चाहे, वेद बाढ़ ही हारे ॥3॥
या वरखला रंगा चंगा, सबका चित्त चुरावं । पलटा वरन गये गुन अगले अब देखें नहीं भावे ॥14॥ मोटा मही काट कर भाई ! कर अपना सुरकेरा ।
आग से ईंधन होगा, भूधर समझ सबेरा || 5 || 2
छील कवि ने उदरगीत में जीव की तीनों अवस्थाओं का वर्णन किया है । बाल्यावस्था में वह नव-दस माह अत्यन्त कष्ट पूर्वक गर्भावस्था में रहता है, बाल्याबस्था अज्ञान में चली जाती है, युवावस्था इन्द्रियवासना में निकल जाती है प्रोर वृद्धावस्था में इन्द्रियाँ शिथिल होने लगती हैं। सारा जीवन यों ही चला जाता है'उदर उदधि में दस मासाह रह्यो ।'
'जरा बुढ़ापा बैरी ग्राइभो, सुधि-बुधि नाही जब पछिताइयो 12
शरीर के सौन्दर्य और
तो बुद्धावस्था या गई,
ऐसे शरीर से ममत्व हटाने के लिए भूभर कवि ने बल पर अभिमान करने वाले मोही व्यक्ति से कहा कि भाई ! कुछ तो सचेत हो जाओ । श्रवण शक्ति कम हो गई, पैरों में चलने की शक्ति न होने से वे लड़खड़ाने लगे । शरीर यष्टि के समात पतला हो गया, भूख कम होने
1. हिन्दी पद संग्रह, पृ. 152, भूमर पद संग्रह, जिनवाणी प्रचारक कार्यालय
कलकत्ता ।
2. हिन्दी जैन भक्ति काव्य और कवि, पृष्ठ 105 उदरगीत, दीवान बधीचन्द्रजी का मंदिर, जयपुर गुटका नं. 27, वेष्टन नं. 973.