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लगी, पाली में पानी गिरने लगा, तिों को पोक्त टूट गई, हरियों के जोड़ उखड़ने लने, कमी को रंग बदल गया, औरीर में रोग ने घेरा गल दिया, पुनादि सम्बन्धी उस दुःख को बोट नहीं सकते, तब पोर कोन बांट सकेगा ? इसलिए रे प्राणी पद 'तो कम से कम अपना हित कर लें। यदि अभी भी सचेत नहीं हमा तो फिर कर होगा । पश्चात्ताप ही हाथ लगेगा।
पीया र बुढ़ापा मानी, सुषि बुधि विसरानी ।' भैया भगवती दास को यह शरीर सप्त धातु से निर्मित महागुरव से परिपूर्ण दिखाई देता है । इसलिए उन्हें पाश्चर्य होता है कि कोई उसमें पासकों हो जाता है । कवि भूधरदास को भी यह पाश्वर्य का विषय बना कि किसी को इस शरीर से घसा क्यों नहीं होती-'देह दशा यह विखित मात, पिनात नहीं किन बुद्धि हारी है।'
___ यह शरीर सभी प्रकार के पवित्र पदार्थों से भरा हुमा है। इसलिए दौलतराम कहते हैं कि इस शरीर को घिनौनी और जड़ जानकर उससे मोह मत करो :
'मत कीज्यो जी गारी, घिनगेह देह जड़ जान के । मात पिता रज वीरजसो यह, उपजी मलकुलवारी।
अस्थिमाल पलनसा जाल की, लाल लाल जलक्यारी ।। मैया भगवतीदास कहते हैं कि ऐसे घिनौने अशुद्ध शरीर को शुद्ध कैसे किया जा सकता है ? शरीर के लिए भोजन कुछ भी दो पर उससे रुधिर, मांस, अस्थियां पादि ही उत्पन्न होती हैं । इतने पर भी वह क्षणभंगुर बना रहता है। पर मज्ञानी मोही व्यक्ति उसे यथार्थ मानता है। ऐसी मिथ्या बातों को वह सत्य समझ लेता है।
पं. दौलतराम शरीर के प्रति मानव के राग को देखकर प्रत्यन्त ब्रहित हो जाते हैं और कह उठते है हे मूढ, इससे ममत्व क्यों करता है । यह शरद मेघ और जलबुदबुद के समान क्षणभंगुर है। प्रतः भास्मा और शरीर का भेदविज्ञान कर,
1. हिन्दी पद संग्रह, पृ. 15, बनारसीविलास, प्रास्ताविक फुटकर
कविता, 12. 2. बाविलास, शतमम्टोत्तरी, 46, पृ. 18, 3. जैनशतक, 20, पृ. 9. 4. दौलत जैन पद संग्रह, पृ. 11. पद 17वां । 5. ब्रह्मविलास, शतमष्टोत्तरी, 103.
ब्रह्मविलास, परमाणे पद पंक्ति 1.