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कविवर भूधरदासविरचित
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जात सही । जिहिं पान किये सुधि जात हिये, जननीजन जानत नार यही ॥ मदिरा सम आननपिद्ध कहा, यह जान भले कुलमें न गही । धिक है उनको वह जीभ जलो, जिन मूटुनके मत लीन कही५३ वेश्यानिषेध |
धनकारन पापनि प्रीति करें, नहिं तोरत नेह जथा तिनको | लव चाखत नीचनके मुँहकी, शुचिता सब जाय छिये जिनको || मद मांस वजारनि खाय सदा, अँधले विमनी न करें घिनको । गनिका सँग जे सठ लीन रहें,धिक है! धिक है! धिक है! तिनको ५४ आग्वेदनिषेध |
कवित्त मनहर |
arrai बस ऐसो आन न गरीव जीव, प्राननसों प्यारे प्रान पूंजी जिस यह है । कायर सुभाव धर काहंसों न द्रोह कर, सवहीसों डरे दांत लिये तृन रहे है ॥ काहसों न रोप पुनि काह न पोष चह, काके परोप परदीप नाहिं कह है । नेकु स्वाद सारिवे को ऐसे मृग मारियेको, हाहा रे ! कठोर ! तेरो कैसे कर बहै है ।। ५५ ।।
१ तिनका, तृण । २ लार । ३ जगलमे । ४ परोक्षमे । ५ हाथ चलता है, उठता है ।