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जैनगतक।
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در ره ره ره قه ره قدم برداری قرار گره رقه رو در رده بندی نشینی ثریا
सप्तव्यसन। जूआखेलन मांस मद, वेश्याविसन शिकार । चोरी पररमनीरमन, सातों पाप निवार ॥ ५० ॥
आनिषेत्र ।
छप्पय । सकल-पापसंकेत, आपदाहेत कुलच्छन । कलहखेत दारिद्र देत, दीसत निज अच्छन । गुनसमेत जसोत, कंत रवि रोकत जैसे।।
औगुननिकरनिकेत, लत लख बुधजन एमे ॥ जुआ समान इह लोकम, आन अनीति न पेखिये । इस विसनरायके खेलको, कौतुक ह नहिं देखिये ॥५१
मांसनिषेध । जंगम जियको नाश होय. तत्र मांस कहावै । ___ सपरस आकृति नाम, गन्ध उर घिन उपजावै ।।
नरक जोग निरदई खाहिं, नर नीच अधरमी।
नाम लेत तज देत असन, उत्तमकुलकरमी ॥ में यह निपटनिंद्य अपवित्र अति.कृमिकुलरासनिवासनित । आमिष अभच्छ याको सदा, बरजो दोष दयालचित५२
मदिरानिषेध ।
दुर्मिल ( सवैया )। कृमिरास कुवास सराय दह, शुचिता सब छीवत १ नत्रांसे।
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