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कविवर भूधरदासविरचितये चिहन जान जाके चरन, नमो नमो मुझ देव वह ॥
यज्ञहिंसक।
कवित्त मनहर । __कहै दीन पशु सुन यज्ञके करया मोहि, होमत हुताशनमें कौनसी वड़ाई है ? । स्वर्गसुख मैं न चहुं
देहु मुझे" यों न कह, घास खाय रहूं मेरे यही मन - भाई है ॥ जो तू यह जानत है वेद यों बखानत है, : जज्ञजयो जीव पाव स्वर्गसुखदाई है । डार क्यों न 3 वीर यामें अपने कुटुंबहीको, मोह जिन जारै जगदीशकी दुहाई है ॥४७॥ साती बारगर्भित पंट्कर्मोपदेश ।
छप्पय । अघ अँधेर आदित्य, नित्य स्वाध्याय करिज। सोमांपम संसार तापहर, तप करलिज ॥ जिनवरपूजा नेम करो, नित मंगल दायन ।
बुध संजम आदरहु, धरहु चित श्रीगुरुपायन ॥ है, निजवितसमान अभिमान विन, सुकर सुपत्तहिं दानकर । यो मनि सुधर्म पटकम भनि, नरभौलाहो लेहु नर ॥
दोहा। * ये ही छह विधि कर्म भज, सात विसन तज बीर । । इस ही पेंडें पहुंचि है, क्रम क्रम भवजलतीर ॥४९॥
१ इस छप्पयमे साता दिनके नाम आये है । २ मार्गसे ।। OVOX OSVOD OS X OO OOOOoorex oc cover anlegra EGO OCH
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