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कविवर भूधरदासविरचित. भये अविकारी। सिद्धनथोक बसें शिवलोक, तिन्हें पगधोक त्रिकाल हमारी ॥ १२ ॥
साधुस्तुति।
कवित्त मनहर । शीतरितु-जोरें' अंग सब ही सकारें तहां, तनको न मोर नदीधारें धीर जे खरे।जेठकी झकोरें जहां अंडा ए चील छोरें पशु, पंछी छांह लोर गिरिकोरें तपवे धरे॥
घोर घन घोरें घटा चहुंओर डोरें, ज्यों ज्यों चलत हि| लोरे त्यों त्यों फोरें बल य अरे । देहनेह तोर परमारथसों है प्रीति जार, ऐसे गुरुओरें हम हाथ अंजुली करें॥१३॥
जिनवाणीस्तुति ।
मत्तगयंद ( संवैया )। वीरहिमाचलते निकरी, गुरु गौतमके मुखकुंडढरी है । मोह-महाचल भेद चली, जगकी जड़तातप
दूर करी है ॥ ज्ञानपयोनिधिमाहिं रली, बहु भंगत३ रंगनिसों उछरी है । ता शुचि शारद गंगनदीप्रति,
में अंजुली निजशीस धरी है ॥१४॥ , या जगमंदिरमें अनिवार, अज्ञान अँधेर छयो अति . भारी। श्रीजिनकी धुनि दीपशिखा सम, जो नहिं होत प्रकाशनहारी ॥ तो किहभांति पदारथपांति, कहां
१ जोरमे । २ हुँदै । ३ मोहरूपी महापर्वत । ४ जिमका निवारण न हो सके । ५ पदार्थोकी तत्त्वोकी पक्ति । compareer coopencoreDVERTYoor coreovemesVED
ی ر کرتی رہتی میراث فرهنت سرور واقعہ
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2018-2019 SC Coopama paramA
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