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ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
जैनशतक |
श्रीवर्डमानजिनस्तुति । दोहा |
दिन कर्माचल दलनपेवि, भवि- सरोज- रविराय । कंचनछवि कर जोर कवि, नमत वीर जिन पाय ॥ ९ सवैया (३१ मात्रा.)
रहो दूर अंतरकी महिमा, बाहिज गुनवरनत बल काँप । एक हजार आठ लच्छन तन, तेज कोटि रवि किरन उथा ॥ सुरपति सहस आंखअंजुलिसों. रूपामृत पीवत नहिं धप । तुम विन को समरत्थ वीरजिन, जगसों काहि मोखमें थाप ॥ १० ॥
श्री सिद्धस्तुति ।
मत्तगयंद |
ध्यान हुताशनमें अरि ईंधन. झोंक दियो रिपु रोक निवारी । शोक हस्त्रो भविलोकनको वर, केवलभानमयूख उधारी ॥ लोक अलोक विलोक भये शिव, जन्मजरामृतपंक पखारी । सिद्धन थोक बसें शिवलोक, तिन्हें पगधोक त्रिकाल हमारी ॥ ११ ॥
तीरथनाथ प्रनाम करें, तिनके गुनवर्ननमें बुधि हारी । मोम गयो गल ममझार रह्यो, तहँ व्योमं तदाकृतिधारी । लोक गहीरनदीपति नीर, गये तिरतीर
१ वज्र । २ तृप्त होवे । ३ निकालकर । ४ ध्यानरूपी अग्नि । ५ किरणं । ६ साचमे । ७ आकाश । ८ गभीर समुद्र ।
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