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ALEVOTE TOYOTA VON Ever
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कविवर भूधरदासविरचित
चरनों झलकै बहु झांई । सूँघन पाँय - सरोज-सुगंधि, किधौं चलि ये अलिकति आई ॥ ६ ॥
श्रीनेमिजिनस्तुति | कवित्त मनहर |
३
शोभित प्रियंग अंग देखें दुख होय भंग, लाजत अनंग जैसे दीप भानुभासतें । बालब्रह्मचारी उग्रसेनकी कुमारी जादों, नाथ तैं निकारी जन्मकादोदुखरासतें ॥ भीम भवकानन में आन न सहाय स्वामी, अहो नेमि नामी तक आयो तुम तामतें । जैसे कृपाकंद वनजीवनकी बंद छोरी, त्यों ही दासको खलास कीजे भवपासतें ॥ ७ ॥
श्रीपार्श्वनाथस्तुति । छप्पय ( सिंहावलोकन )
जनम-जलधि- जलजानं, जान भविहंस - मानसर । सरव इंद्र मिल आन, आनं जिस धरहिं शीसपर || पर उपगारी बार्न, बानं उत्थपई कुनयगन । गनसरोजवन-भान, भान मम मोह- तिमिरघन ॥ घनवरन देह- दुख-दाह-हर, हरखत हेरि मयूर - मन । मनमथ - मतंग- हरि पासजिन, जिंन विसरहु छिन
जगतजन ॥ ८ ॥
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१ छाया । २ चरणकमलकी सुगधि । ३ कीचड । ४ जलयान, जहाज | ५ भाज्ञा । ६ स्वभाव । ७ वाणी । ८ उखाडती है । ९ देखकर । १० पार्श्वजिन ।
ॐavavavabvab
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