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जैनशतक ।
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छप्पय। जयो नाभिभूपालबाल, सुकुमाल सुलच्छन । जयो स्वर्ग पातालपाल, गुनमाल प्रतिच्छन । दृग विशाल वर भाल, लाल नख चरन विरजहिं ।
रूप रसाल मराल चाल, सुन्दर लखि लजहि ॥ रिपुजाल काल रिसंहेश हम, फँसे जन्म जंबालदह । यातें निकाल बेहाल अति, भो दयाल दुख टाल यह ॥
चन्द्रप्रभस्तुति।
संवया ( मात्रा ३२ )। चितवत वदन अमल चंद्रोपम, तज चिंता चित भये अकामी । त्रिभुवनचंद पापतपचंदन, नमत चरन चंद्रादिक नामी ॥ तिहुँ जग छई चंद्रिकाकीरति, चिहनचंद्र चिंतत शिवगामी । वन्दों चतुर-चकोरचंद्रमा, चंद्रवरन चंद्रप्रभ स्वामी ॥५॥
शान्तिनाथस्तुति।
मत्तगयन्द ( सवैया )। ___ शांति जिनेश जयो जगतेश, हरै अघताप निशेश
की नाई । सेवत आय सुरासुरराय, नमैं सिरनाय । महीतलताई ॥ मोलि लगे मनिनील दिपैं, प्रभुके
१ ऋषभेश, आदिनाथ । २ कीचडका द्रह । ३ चन्द्रमाका हे चिन्ह जिसके । ४ चन्द्रमा । ५ मुकुटमें ।
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