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ऑनमःसिद्धभ्यः।
कविवर भूधरदासविरचित जैनशतक।
DOGICAL STIGOROAD
श्रीआदिनाथस्तुति ।
संवया (मात्रा ३१) ज्ञानजिहाज बैठ गनधरसे, गुनपयोधि जिस नाहिं तरे हैं । अमरसमूह आन अवनीसों, घसि घसि शीम प्रनाम करे हैं ॥ किधी भाल-कुकरमकी रेखा, दृर करनकी बुद्धि धरे हैं। ऐम आदिनाथके अहनिशि. हाथ जोर हम पॉय परे हैं ॥१॥ ___ काउसंग्गमुद्रा धरि वनम, ठाड़े रिषभ रिद्धि तज है हीनी । निहचल अंग मेरु है मानों. दोऊं भुजा छोर
जिन दीनी॥ फँमे अनंत जंतु जग-चहले, दुखी देख करना चित लीनी । काढ़न काज तिन्हें समरथ प्रभु, किधी बाँह ये दीरघ कीनी ॥ २॥ है करनों कछु न करनतें कारज, तातें पानि प्रलंब
कर है । रह्यो न कछु पाँयनतें पवो, ताहीतें पद नाहिं कटर हैं ॥ निरख चुके नैनन सब यातें, नैन नासिका. अनी धरे हैं । कानन कहा सुने?यों कानन, जोगलीन
जिनराज खरे हैं ॥३॥ र १ अहर्निशि-रात्रिदिन । २ कायोत्सग । ३ कीचडमे। ४ चलना ।
५ नोक । ६ कानोसे । ७ जगलमे । acco Qamasaavanawar 0000000
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