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मुनिवंशदीपिका |
ग्रंथ फेर, रच्यौ जामैं राखी मरयाद मोक्ष पंथकी ॥ चरणानुयोग दरवानुयोग जामैं कहे, जाकौं सुनि शुद्ध बुद्धि होत है असंतकी । वीतराग भाव धरि जानिवेक आप पर, कीये हैं कथन जैसी आज्ञा अरहंतकी || ३६ || वसुनन्दि, वहकेर, योगीन्द्रदेव, और शुभचन्द्र |
वसुनंदि तथा वट्टकेर मुनिइंद चंद, दोऊ मुनि धरमधुरंधर सु भए हैं ॥ कहे वसुनंदिसंहितादिक अनेक ग्रंथ, जाक सुनि मिथ्यामती जैनी होय गए हैं । जोगीन्द्र मुनिंद्रचंद्रजीने फेर आतमाके, हेत परमातमाप्रकाश वरनए हैं । शुभचंद्रजीने ज्ञानअर्णव सिद्धांत कौ, जामैं दशलक्षण धरम कह दए हैं ॥ ३७ ॥
पद्मनन्दि, शिवकोटि ।
पद्मनंदिजीनें पद्मनंदिपंचवीसी रची, महाज्ञानके प्रमान देव गुण गाये हैं | आराधनंसार शिवकोटि मुनिजीनें रच्यौ, सातसंधिमाहिं शुभ मारग बताये हैं | दरशन ज्ञान और चारितको रूप कहाँ, चौथी बेर बाराभावनाके भाव भाये हैं । जाकी कथा मुनि राग दोप भाव हनि सदा, भव्य जीव अनुकूल मारगमें आये है || ३८ ॥ देवनन्द स्वामी |
देवनंदिने जिनेंद्रव्याकरण आगममैं, नाना भांति
ग्रन्थ अमृतचन्द्रस्वामीके है । १ भगवती आराधना | २ पूज्यपाद और देवनंदिको दो समझकर कविवरने दो जगह लिखे है । यथार्थमें पूज्यपादका ही दूसरा नाम देवनन्दि है । ३ जैनेन्द्रसूत्र |