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यति श्रीनयनसुखजी विरचित। ज्ञानप्रवाद सिद्धांतका, जिन तीसरा प्राभृत किया । कुज्ञान अरु सुज्ञान कहि, विज्ञानकी कथनी करी । सो गुरु सदा जयवंत जिन, भविजीवकी संशय हरी॥३३॥ हस्तिनाग और यतिनायक।
सवैया। हस्तिनाग नामा मुनि ज्ञान परवादतने, तीजे प्राभृतको ज्ञान पढ़ लियौ है । तानैं यतिनायक मुनीशकौं पढ़ायौ तब, तानें सूत्रचूर्णिका तदनुकूल कियौ है ॥ ताकौं फेरि अरथ-समुद्धरण टीका करी, सत्यक्षीरसागर” सार काढ़ि पियौ है । ताहीके रसैया परमारथ सधैया जन, तिनके पदारविंदमाहिं सीस दियौ है ॥ ३४ ॥
कुन्दकुन्दाचार्य। कुंदकुंद मुनिराज चूर्णिका समुद्धरण, दोनोंतनौं ज्ञान पाय तीन सूत्र कहे हैं । पंचासतिकाय समैसार प्रवचनसार, जाकौं सुनि संतनके चित्त थिर भए हैं ॥ आतमीक परम धरम करता करम, क्रियाके सरूप भिन्न भिन्न वरनएं हैं । जीव नटवाके सब नाटक बताये गुरु, स्याद्वाद जोरतें मिथ्यात वन दहे हैं ॥ ३५॥
अमृतचन्द्रसूरि। अमृतसुचंद मुनि रची देववंद पुनि, टीका समसार प्रवचनसार ग्रंथकी । 'पुरुषअरथसिद्धिको उपाय'
१ रसिया । २ इन तीन सूत्रोके सिवाय कुन्दकुन्दखामीके ८१ पाहुड़ तथा द्वादशानुप्रेक्षा आदि और भी बहुतसे ग्रन्थ है । ३ देवों करके पूज्य । ४ पुरुषार्थसिद्ध्युपाय । पंचास्तिकायटीका तथा तत्त्वार्थसार आदि और भी कई