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जैनाचार्यों का अलंकारशास्त्र में योगदान
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कामराज की प्रार्थना पर शृङ्गारार्णव चन्द्रिका नामक ग्रन्थ की रचना की थी इसमे इन्होंने कर्नाटक के सुप्रसिद्ध कवि गुणवर्मा का नामोल्लेख किया है ।" गुणवर्मा का समय ई० सन् १२२५ (वि० स० १२८२ ) के लगभग माना जाता है । अत विजयवर्णो का समय कर्नाटक- कवि गुणवर्मा के पश्चात् मानना होगा ।
'शृङ्गारार्णव- चन्द्रिका' के प्रारम्भिक भाग से स्पष्ट होता है कि श्री वीरनरसिंह नामक राजा वगभूमि का प्रशासक था । उनकी राजधानी वगवाटी थी। ई० सन् १२०८ (वि० स० १२६५ ) मे वीरनरसिंह के पुत्र चन्द्रशेखर arभूमि के शासक हुए थे, पुन ई० सन् १२२४ मे इनके छोटे भाई पाण्ड्यप्प सिहासनारूढ हुए । तत्पश्चात् इनकी बहिन विट्ठलादेवी राज्य की सचालिका नियुक्त की गईं। इसी क्रम मे ई० सन् १२४४ (वि० स० १३०१ ) मे विट्ठला देवी के पुत्र कामिराज राजसिंहासन पर आरूढ हुए थे । इन्ही कामिराज की प्रार्थना पर विजयवर्णी ने 'श्रृङ्गारार्णव चन्द्रिका' की रचना की थी, अत विजयवर्णी कामिराज के समकालीन ठहरते हैं तथा उक्त ग्रन्थ की रचना भी इसी के आस-पास होने से ईसा की तेरहवी शती के मध्य मे हुई होगी । विजयबण ने कामिराज को 'गुणार्णव' और 'राजेन्द्रपूजित' ये दो विशेषण दिए है, साथ ही पाण्ड्वग का भागिनेय और महादेवी विट्ठलाम्बा का पुत्र लिखा है। इससे भी दोनो की समकालीनता सिद्ध होती है । अत कामिराज
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मालकारसग्रह |
नृप्रार्थितेन नियते सूरिणा नाम्ना शृङ्गारार्णवचन्द्रिका ||
१ इन्ध
२ गुणवर्मादिकर्नाटककवीना
- शृङ्गारार्णवचन्द्रिका १।२२ सुक्तिसचय ।
वाणीविलास देयाते रसिकानन्द दायिनम् || वहीं, १॥७ ॥
३ तीथकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, खण्ड ४, पृ० ३०६ ।
४ शृङ्गारार्णव- चन्द्रिका, १1११-१२ ।
५ प्रशस्ति संग्रह के० भुजबली शास्त्री, पृ० ७७-७८ ।
६ तस्य श्री पाण्ड्यवगस्य भागिनेयो गुणार्णव ।
विट्ठलाम्बा महादेवी पुत्री राजेन्द्रपूजित ||
- शृङ्गारार्णवचन्द्रिका, १३१६